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टीनू चूहा की मित्रता | प्रेरणादायक कहानी | Motivational Story in Hind By Abhijeet Mishra

नमस्कार मैं हूँ अभिजीत मिश्रा और लेकर आया हूँ आज फिर एक नई प्रेरणादायक कहानी "टीनू चूहा की मित्रता"

जंगल में मोटा-सा चूहा रहता था । उसका नाम टीनू था।

वास्तव में वह अपने नाम के अनुरूप ही था । क्योंकि वह रोज दोपहर को खाना खाकर घूमने जाता था । बरसात हो या तेज धूप, वह अपने साथ छाता लेकर ही जाता था ।

एक दिन बड़ी तेज धूप निकल रही थी । टीनू बिना छाता लिए ही सैर करने चल दिया । पर जब वापस लौट रहा था, तो अचानक तेज बारिश होने लगी ।

टीनू ने सोचा अब क्या किया जाये ?

परंतु जल्द ही उसे एक पेड़ में बना कोटर दिखाई दिया । वह झट से उसमें घुस गया और बारिश रुकने का इंतजार करने लगा । और जब पानी रुका तो अंधेरा हो चुका था ।

टीनू ने कोटर से बाहर निकलने के लिए जैसे ही अपना पैर बढ़ाया । उसे बड़ा दर्द महसूस हुआ, और दर्द इतना हुआ की उसकी चीख निकल गयी ।

उसकी पूंछ कोटर के अंदर किसी लकड़ी में फंस गयी थी । उसने उसे निकालने का भरसक प्रयास किया, परंतु वह नहीं निकल पायी ।

टीनू अब मुसीबत में फंस गया था । रात हो रही थी और उसके दर्द मैं भी वृद्धि हो रही थी ।

जब उसको दर्द ज्यादा होता, तो वह “ची-ची” करके कराहने लगता ।

किस्मत से उसी पेड़ के ऊपर एक घोंसले में कठफोड़वा चिड़िया रहा करती थी ।

“ची-ची” की आवाज सुनकर वह चिड़िया परेशान हो उठी । उसने आवाज की दिशा में देखा, परंतु उसे कोई पक्षी दिखाई नहीं दिया ।

फिर उसने अपने घोंसले के पास वाले तने में बनी कोटर में झाँककर देखा तो मालूम हुआ कि कोई चीज दर्द से कहरा रहा है ।

वह तुरंत कोटर के ओर नजदीक पहुंँची ।

अंधेरे के कारण उसे कोटर के अंदर कुछ दिखाई नहीं दे रहा था । सिर्फ किसी के कराहने की आवाज आ रही थी ।

तब चिड़िया ने धीरे से पूछा- “कौन है भाई ?”

टीनू आवाज सुनकर चौंक पड़ा । वह तुरंत बोला- “मैं हूंँ टीनू चूहा ।”

चिड़िया ने पूछा- “तुम कराह क्यों रहे हो ?”

टीनू चूहे ने उत्तर दिया- “मुझे दर्द हो रहा है ।”

फिर पूरी बात चिड़िया को बताकर उसने पूछा- “तुम कौन हो ?”  

“मैं चुन्नी चिड़िया हूं । इसी पेड़ पर मेरा घोसला है ।” चुन्नी चिड़िया ने प्यार से उसे बताया ।

टीनू चूहा फिर “ची-ची” करने लगा ।

चुन्नी ने फिर प्यार से पूछा- “क्या ज्यादा दर्द हो रहा है ?”

“हां !” टीनू कहराहकर बोला ।

“मैं अभी तुम्हारी पूँछ निकालती हूँ ।”

चिड़िया के मुंँह से यह बात सुनकर टीनू को आश्चर्य हुआ । उसने पूछा- “पर कैसे निकालोगी तुम ?”

चुन्नी चिड़िया बोली- “अरे, मैं तो कठफोड़वा चिड़िया हूँ । मैं अपनी चोंच से लकड़ी को फोड़कर तुम्हारी पूंछ निकाल दूँगी । अब तुम परेशान मत हो ।” उसने सहानुभूति दिखाई ।

“मगर अंदर तो बहुत अंधेरा है, तुम्हें कुछ दिखाई नहीं देगा ।”

चुन्नी ने चहककर कहा- “तुम उसकी चिंता मत करो । रोशनी के लिय मेरे जुगनू साथी हैं, जो इसी पेड़ पर रहते हैं । मैं अभी उन्हें लेकर आती हूँ ।” कहकर चुन्नी वहांँ से उड़ गयी ।

फिर थोड़ी देर में चुन्नी कुछ जुगनूओं को अपने साथ लेकर आ गयी और उनके साथ कोटर में घुस गयी ।

कोटर के अंदर घुसकर जुगनू टिम-टिम करने लगे ।

कोटर में रोशनी होने लगी ।

चुन्नी ने अपना तेज धारदार चोंच से “कुट-कुट” कर लकड़ी फोड़नी आरम्भ कर दी।

कुछ ही देर में लकड़ी कट गयी और टीनू की पूँछ बाहर निकल आयी ।

वह कूदकर कोटर से बाहर आ गया ।

चुन्नी चिड़िया और सारे जुगनू भी कोट से बाहर आ गये ।

सब खुशी से नाचने लगे और फिर तभी जोर से बादल गरजे ।

चुन्नी ने कहा- “टीनू, अब तुम जल्दी से अपने घर जाओ । बादल गरज रहे हैं, यदि पानी बरसने लगा तो तुम भीग जाओगे ।”

टीनू ने जल्दी से कहा- “अच्छा भाई लोगों, मैं तो चलता हूं, तुम लोगों से मिलने कल आऊंगा ।” कहकर वह अपने घर की तरफ चल दिया ।
अब तो वह चुन्नी चिड़िया से अवश्य मिलता ।

धीरे-धीरे दोनों में घनिष्ठ मित्रता हो गयी ।

एक दिन टीनू चूहा जब चुन्नी चिड़िया के घर उससे मिलने आया, तो उसने देखा की घोंसला टूटा हुआ है और उसका भी कहीं अता-पता नहीं है ।

तब टीनू ने उसे जोर-जोर से पुकारा- “चुन्नी-चुन्नी” मगर उसे कोई जवाब नहीं मिला ।

फिर तभी उधर से एक गिलहरी निकली ।

टीनू ने उससे पूछा- “गिलहरी जी ! क्या आपने चुन्नी को कहीं देखा है ?”

गिलहरी ने उदास होकर कहा- “भाई एक बहेलिये ने उसे पकड़ लिया है और पिंजरे में बंद करके वह उसे अपने साथ ले गया है ।”
सुनकर टीनू को बड़ा दुःख हुआ ।

उसने गिलहरी से पूछा- “वह किधर गया है ?”

“उधर !” गिलहरी ने उस इशारे से बताया ।

फिर टीनू जल्दी से उसी तरफ चल दिया । चलते-चलते रास्ते में टीनू को एक खरगोश मिला ।

खरगोश ने पूछा- “बड़े परेशान लग रहे हो, भाई । क्या बात है ?”

टीनू ने अपनी परेशानी बतायी ।

चुन्नी के बारे में जानकारी खरगोश बोला- “टीनू भाई, तुम मेरी पीठ पर बैठो, मैं तुम्हें जल्दी से ले चलता हूंँ ।

फिर टीनू खरगोश की पीठ पर चढ़कर बैठ गया ।

थोड़ी ही देर में उन दोनों ने चुन्नी को तलाश कर लिया ।

एक बहेलिया हाथ में पिंजरा लिये चला जा रहा है ।

पिंजरे में चुन्नी को देखकर टीनू बहुत खुश हुआ और खरगोश से बोला- “भाई खरगोश, बस मुझे यही उतार दो ।”

खरगोश टीनू को उतारकर वापस लौट गया । और टीनू उस बहेलिये के पीछे धीरे-धीरे चलने लगा ।

कुछ ही समय में बहेलिया अपने घर पहुंच गया । और फिर घर में पिंजरा रखकर वह बाहर चला गया ।

टीनू चूहा तुरंत चुन्नी चिड़िया के पास पहुंचा ।

चुन्नी चिड़िया टीनू को देखकर पहले तो बहुत खुश हुई और फिर वह रोने लगी।

रोते हुए बोली- “टीनू ! बहेलिया मुझे कभी नहीं छोड़ेगा ।”

टीनू बोला- “चुन्नी ! तुम रोओ मत ! मैं जैसे कहता हूं तुम वैसा ही करो । सुनो ! जैसे ही बहेलियां आये, तुम जोर-जोर से चिल्लाने लगना, तब तक चिल्लाती रहना जब तक वह तुझे पिंजरे से बाहर न निकाल ले ।

“पर वह मुझे बाहर निकालेगा ही क्यों ?” चुन्नी ने पूछा ।”

“यह देखने के लिए कि कहीं तुम्हें चोट तो नहीं लग गयी है, और अगर वह तुम्हें बाहर निकाल ले तो तुम उड़ने के लिए तैयार रहना ।”

टीनू ने इतना ही कहा था कि बहेलिया अंदर आकर वहीं पर बैठ गया ।

थोड़ी देर बाद चुन्नी ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया ।

उसे चिल्लाता देख बहेलिये ने उसके लिए एक छोटी-सी कटोरी में खाना, एक में पानी भरकर पिंजरे में रख दिया । मगर चुन्नी ने चिल्लाना बंद नहीं किया ।

बहेलियां बोला- “पता नहीं क्या बात है ? शायद उसे कहीं चोट लग गयी होगी ।”

उसने पिंजरा खोलकर चुन्नी को बाहर निकाला और हाथ में लेकर उसे सहलाने लगा ।

तभी टीनू चूहे ने अलमारी के ऊपर से छलांग लगाई । वह उसके उसी हाथ पर कूदा था, जिसमें उसने चुन्नी को पकड़ रखा था ।

बहेलिया घबरा गया । वह हडबड़ा उठा ।

उसके हाथ से चुन्नी चिड़िया छूट गयी ।

वह तो उड़ने के लिए तैयारी ही थी । बहेलियें के हाथ से निकलते ही वह फुर्र से थोड़ी ही दूरी पर एक ऊंचे पेड़ पर जा बैठी और टीनू चूहे के आने का इंतजार देखने लगी ।

चुन्नी उड़ जाने पर बहेलिये को बहुत गुस्सा आया । उसने टीनू चूहे को पकड़ने की कोशिश की ।

परंतु टीनू बहेलीये को चकमा देकर कूदता-फाँदता हुआ बाहर आ गया ।

बाहर आकर टीनू चुन्नी को ढूंढने लगा ।

तभी चुन्नी ने उसे देखा और उसके ऊपर आकर वह “ची-ची” करने लगी ।

फिर दोनों खुशी-खुशी जंगल की ओर रवाना हो गये ।

शिक्षा- “ मित्रता का स्वभाव सभी प्राणियों में होता है । किसी में कम तो किसी में ज्यादा । ईश्वर प्रदत्त इस गुण को सभी को समान रूप से अपनाना चाहिए । जिस प्रकार कठफोड़वा चिड़िया और चूहे में ऐसी मित्रता हुई कि दोनों एक-दूसरे की मुसीबत के दिनों में काम आयें |”